परम श्रद्धेय गुरूदेव द्वारा संचालित धार्मिक मासिक पत्रिका "सिद्ध सुमन प्रभा " में से साभार
आनन्द घन नटवर घनश्यामजी भगवान् कृष्ण जी महाराज के चरण कमलों में श्रद्धा सुमन अर्पित
आ जाओ मेरे प्यारे मोहन
अब तो कान्हा आ जाओ।
दरस को तेरे आँखें प्यासी
मेरी प्यास बुझा जाओ।।
दिल से तुमको मैंने पुकारा, मन में दरस की प्यास लिये।
सूख रहा है तन मन मेरा, सांस चले तेरी आश लिये।
आ जाओ अब नटवर नागर, मेरी प्यास बुझा जाओ।।
आ जाओ मेरे प्यारे मोहन, अब तो कान्हा आ जाओ।
दरस को तेरे आँखें प्यासी मेरी प्यास बुझा जाओ।।
जब से मैंने होश संभालें, तुझको ही मोहन याद किया।
तेरे भरोसे सारे जग से, मैंने नाता तोड़ लिया।
एक आश विश्वास है अब तो, आकर दरस दिखा जाओ।।
आ जाओ मेरे प्यारे मोहन, अब तो कान्हा आ जाओ।
दरस को तेरे आँखें प्यासी मेरी प्यास बुझा जाओ।।
तुझ बिन काम चले ना मेरा, अब किस पर विश्वास करुं।
डूब रहा हूँ जग में अकेला, भव को कैसे पार करुँ।
सदगुरु मेरे बनके कान्हा, नैया पार लगा जाओ।।
आ जाओ मेरे प्यारे मोहन, अब तो कान्हा आ जाओ।
दरस को तेरे आँखें प्यासी मेरी प्यास बुझा जाओ।।
जग से सबको तुमने उबारा, सुनकर दामन थाम लिया।
आश और विश्वास टूट गये, एक सहारा तेरा लिया।
'महाईश' स्वामी करके कृपा, भव से पार लगा जाओ।।
आ जाओ मेरे प्यारे मोहन, अब तो कान्हा आ जाओ।
दरस को तेरे आँखें प्यासी मेरी प्यास बुझा जाओ।।
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