परम पूज्य श्री गुरूदेव द्वारा अमेरिका प्रवास के समय रचित भजन

प्रीत कर दुनिया वालों से बता तूने क्या कमाया रे।
पास जो तेरे हीरा था वह भी तूने लुटाया रे।।
बातों के जाल में फंसकर विषयों की आँधी में पगले,
तप की अग्नि का सोना भी मुफ्त में खा उड़ाया रे।
प्रीत कर दुनिया वालों से बता तूने क्या कमाया रे।
पास जो तेरे हीरा था वह भी तूने लुटाया रे।।
जिन्हें तू अपना समझे हैं वो स्वार्थ की प्रीत रखते हैं , मतलब के निकलने पर न सूरत याद रखते हैं।
तुम्हें देखा तो था शायद मगर न कुछ याद आता है, करें क्या बात रे भाई हमें न वक़्त मिलता है।
मिले होंगे ही हम तुमसे तुम क्या झूठ बोलोगे , ज़माने में बड़ा मुश्किल भरोसा करना होता रे।
प्रीत कर दुनिया वालों से बता तूने क्या कमाया रे।
पास जो तेरे हीरा था वह भी तूने लुटाया रे।।

प्रीत कर दुनिया वालों से बता तूने क्या कमाया रे।
पास जो तेरे हीरा था वह भी तूने लुटाया रे।।
बातों के जाल में फंसकर विषयों की आँधी में पगले,
तप की अग्नि का सोना भी मुफ्त में खा उड़ाया रे।
प्रीत कर दुनिया वालों से बता तूने क्या कमाया रे।
पास जो तेरे हीरा था वह भी तूने लुटाया रे।।
जिन्हें तू अपना समझे हैं वो स्वार्थ की प्रीत रखते हैं , मतलब के निकलने पर न सूरत याद रखते हैं।
तुम्हें देखा तो था शायद मगर न कुछ याद आता है, करें क्या बात रे भाई हमें न वक़्त मिलता है।
मिले होंगे ही हम तुमसे तुम क्या झूठ बोलोगे , ज़माने में बड़ा मुश्किल भरोसा करना होता रे।
प्रीत कर दुनिया वालों से बता तूने क्या कमाया रे।
पास जो तेरे हीरा था वह भी तूने लुटाया रे।।
वक़्त अब तंग आया तो तुझे सब याद आता है, करी थी तब तो मनमानी क्या ये भी याद आता है।
तोड़ सब क़ायदे कानून वफ़ा की कसमें खा करके , अपना तो चैन तक छोड़ा जगत में सब लुटाया रे।
गिरेगा अब तो यूँ ही दर्द बेदर्दी हो आया रे।
प्रीत कर दुनिया वालों से बता तूने क्या कमाया रे।
पास जो तेरे हीरा था वह भी तूने लुटाया रे।।
पास जो तेरे हीरा था वह भी तूने लुटाया रे।।
मगर दर्द के याद करने से कभी क्या दर्द जाता है , छुपा बेदर्द जो होता वो उसको भी बढ़ाता है।
हुवा बस रोग तुझको भी यहीं अब आजा प्यारे रे।
गिरा कर नज़रों के परदे खुदी में मस्त हो जा रे , दवाई है यही उत्तम मेरी तू मान भी ले रे।
प्रीत कर दुनिया वालों से बता तूने क्या कमाया रे।
पास जो तेरे हीरा था वह भी तूने लुटाया रे।।
पास जो तेरे हीरा था वह भी तूने लुटाया रे।।
लगाकर पंख जो उड़ते वही कभी गिर भी जाते है , चले घुटनों के बल जो शख्स वो कहाँ लड़खड़ाते है।
चला दे निश्च्य कर तेरा संभल कर वार कर दे रे , विजयश्री दर महेश्वर के फख्त आनी ही आनी रे।
प्रीत कर दुनिया वालों से बता तूने क्या कमाया रे।
पास जो तेरे हीरा था वह भी तूने लुटाया रे।।
पास जो तेरे हीरा था वह भी तूने लुटाया रे।।
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