परम पूज्य श्री गुरूदेव द्वारा रचित एक भावपूर्ण प्रार्थना
" मैं अपने अमेरिका प्रवास से वापस भारत आ रहा था, तो मन बरबस सा होकर भगवान् श्री कृष्ण की लीलाओं में जाने लगा, आनंदकंद बांके बिहारी भगवान् श्री कृष्ण के सम्मुख सती द्रौपदी ने सभागृह में नग्न करने को आतुर दुःशासन से रक्षा के लिए जो प्रार्थना की थी, मन उस पद्य रूपी प्रार्थना में अटक गया, वहीं प्रार्थना रूप पंक्तियां हवाई जहाज में बैठे-बैठे ही लिपिबद्ध कर दी, मन की यह पंक्तियां किसे भायेंगी किसे नहीं परन्तु मुझे तो भा गई -------"
" मैं अपने अमेरिका प्रवास से वापस भारत आ रहा था, तो मन बरबस सा होकर भगवान् श्री कृष्ण की लीलाओं में जाने लगा, आनंदकंद बांके बिहारी भगवान् श्री कृष्ण के सम्मुख सती द्रौपदी ने सभागृह में नग्न करने को आतुर दुःशासन से रक्षा के लिए जो प्रार्थना की थी, मन उस पद्य रूपी प्रार्थना में अटक गया, वहीं प्रार्थना रूप पंक्तियां हवाई जहाज में बैठे-बैठे ही लिपिबद्ध कर दी, मन की यह पंक्तियां किसे भायेंगी किसे नहीं परन्तु मुझे तो भा गई -------"
मैं थारे पांव पडू जी गिरधारी,
हे जी रखियो लाज हमारी।।
जन्म हुवा था जी मेरा अनोखा, ब्याही गई तो वर मिला चोखा।
मैं जी पांच वीरों की नारी, हे जी रखियो लाज हमारी,
मैं थारे पांव पडू जी गिरधारी।।
पाँचों छत्रपति बलधारी, हुए आज लाचार ये सारे।
दुःशासन खींचे है सारी, हे जी रखियो लाज हमारी,
मैं थारे पांव पडू जी गिरधारी।।
पीहर मेरा दूर घणी है, ससुर मेरा दुनिया में नहीं है।
दादा भीष्म सा व्रतधारी, नहीं विपदा हरे हमारी।
हे जी रखियो लाज हमारी,
मैं थारे पांव पडू जी गिरधारी।।
सत के पुतले द्रोण गुरूजी, बन गए पत्थर कृपाचार्यजी।
थारी बहना की खिंचरी सारी , हे जी विपदा पड़ गयी भारी।
हे जी रखियो लाज हमारी,
मैं थारे पांव पडू जी गिरधारी।।
बिन तेरे हो भैया मेरे, दुःखड़े कौन हरेगा मेरे।
तू चैतन्य नटवर और गिरधारी गिरधारी।
हे जी रखियो लाज हमारी,
मैं थारे पांव पडू जी गिरधारी।।
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