गो धन गजधन बाजिधन और रतन धनखान।
जब आवे संतोष सब धन धूरि समान।।
अर्थात् गौधन, हाथियों का का धन, घोड़ों का धन और रत्न रूपी धन की खान, संतोष धन आने पर धूल के समान तुच्छ है। अतः संतोष मनुष्य का परम धन है।
एक बार एक शहर में एक दम्पत्ति रहते थे। उनके कोई संतान भी न थी तथा धन की भी अत्यंत कमी थी, उन्हें एक समय का भी भोजन नहीं मिलता था। एक महात्मा ने प्रसन्न होकर उन्हें लक्ष्मी प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। संत कृपा से भगवती लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर उनके घर धन वर्षा की। लक्ष्मी को जाते देखकर गृह पत्नी ने रोते हुए लक्ष्मी माता के पैर पकड़ लिये और बोली--हे मैया! हम बड़े व्याकुल थे आपने अपार कृपा की है थोड़ी कृपा और करो। लक्ष्मीजी ने पलक झपकते ही उनके सारे घर को घुटनों तक स्वर्ण मुद्राओं से भर दिया। उन्हें और भी लालच हो आया। उन्होंने और धन की कामना की। लक्ष्मीजी ने प्रार्थना सुनकर और धन वर्षा की। उनका लालच फिर भी कम न हुआ, माता लक्ष्मी ने उन्हें बार-बार संतोष करने को कहा, वह न माने। अंत में रूष्ट होकर लक्ष्मी माता ने उन्हें पुनः निर्धन होने का शाप देते हुए कहा--जाओ! भिक्षावृत्ति से ही अपना गुजारा करो, इतना देने पर भी तुम्हें संतोष नहीं हुआ, संतोष के बिना धन-सुख नहीं मिलता।
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