Thursday, February 4, 2016

"संतुलित आहार "

परम श्रद्धेय गुरूदेव द्वारा रचित पुस्तिका "नैतिक शिक्षा" में से साभार 











आह्रियते असौ आहारः
अर्थात् शरीर की जीवनी शक्ति को विकसित करने के लिये मनुष्य जिन पदार्थों का भक्षण करता है आहार कहलाता है। आहार का मनुष्य के लिए पौष्टिक होना अत्यंत आवश्यक है। सामान्य रूप से स्थिर रहने वाले, तीक्ष्णता से रहित, रसयुक्त, ताज़े, हृदय को रुचिकर खाद्य पदार्थों को संतुलित आहार कहा जाता है। परन्तु इसमें भी क्रम सापेक्ष माना गया है अर्थात् आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य को रात्रि के अंतिम पहर (प्रातः काल उठते ही) में शौचादि से पूर्व जल पीना चाहिए। इसके पश्चात् अन्य आवश्यक कार्यों को को करता हुआ मध्यान्ह में ऊपर कहे गये रसादि से युक्त भोजन को करना चाहिये। भोजन के अंत में नमक से युक्त मट्ठा पीना चाहिये। इसके विपरीत तेज लवण आदि से युक्त, सूखे, बासी, अस्वच्छ एवं अपवित्र, किसी के खाने के बाद छोड़ा हुआ, असमय (समय निकलने के बाद), कम अंतराल के बाद, बार-बार खाने से शरीर में रोग बढ़ता है। 
संक्षेपतः मनुष्य को कम से कम चार घन्टे के पश्चात् ही संतुलित भोजन करना चाहिए। एक समय से दूसरे समय के भोजन के बीच में चार से छः घन्टे का समय उपयुक्त माना गया है। रात्रि के भोजन के पश्चात् सोने से पहले दूध पीना अत्यंत हितकारी है। 

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