परम श्रद्धेय गुरूदेव द्वारा रचित पुस्तिका "नैतिक
शिक्षा" में से साभार
नाम सुमिर पछतायेगा।
पापी जियरा लोभ करत है आज काल उठ जायेगा।
लालच लागी जन्म गंवाया माया भ्रम भुलायेगा।
धन जीवन का गरब न कीजे कागज ज्यों गल जायेगा।
अर्थात् मनुष्य के अंदर काम, क्रोध व लोभ आदि की वृत्ति प्राकृतिक देन है। इनसे युक्त मनुष्य सहज ही पापाचरण कर बैठता है। अतः हमें लालच आदि से बचने का प्रयत्न करना चाहिये। लालच के कारण मनुष्य की क्या दुर्गति होती है यह इस कहानी से स्पष्ट हो जाता है--
हीरामन नाम का एक ब्राह्मण बद्रीकाश्रम के पुण्य क्षेत्र में नैनसी नामक गाँव में अपने परिवार के साथ रहता था। हीरामन बड़ा भक्त था। वह गाँव के शिवालय में प्रतिदिन बड़ी निष्ठा एवं विधि से शिवपूजन किया करते थे। वहीं शिवालय के समीप एक बिल में एक महासर्प रहता था। पंडित हीरामन प्रत्येक दिन सर्प को दूध पिलाया करता थे। दूध पीकर वह सर्प एक बार बिल में जाता था और बाहर निकलकर उनको उसी समय एक स्वर्ण मुद्रा लाकर देता था। यही क्रम बरसों तक चलता रहा। एक दिन हीरामन को किसी कार्यवश पाँच दिनों के लिये बाहर जाना पड़ा। उसने सर्प देवता के सामने जाकर कहा कि मेरा बेटा मंगल मेरी ही भाँति नित्यप्रति आपकी सेवा को आया करेगा। सर्प देवता ने यह बात स्वीकार कर ली। पंडित हीरामन के बाहर चले जाने पर मंगल दूध लेकर सर्प के बिल के समीप रख आया, रोज़ की भाँति दूध पीते ही सर्प ने एक सोने की अशर्फी बिल के बाहर लाकर रख दी। यह देखकर मंगल बड़ा खुश हुआ। वह रोज़ की ही भाँति प्रत्येक दिन अशर्फी लाता था, एक दिन उसके मन में अशर्फियों के प्रति बड़ा लालच आ गया, वह सोचने लगा सर्प देवता के बिल में कोई बड़ा खजाना है, दूध के लालच के कारण सर्प देवता मुझे एक-एक अशर्फी ही प्रतिदिन देते हैं। क्यों न मैं इस महान सर्प को मारकर सारा खजाना एक ही दिन में ले लूँ ? यह सोचकर अगले दिन वह अपने साथ एक बड़ी लाठी लेकर शिवालय गया। सर्प देवता के दूध पीते समय लालची मंगल ने ज्यों ही लाठी का प्रहार सर्प पर करना चाहा उसी समय पहले से सावधान सर्प ने खड़े होकर तेज फुंकार छोड़ी तथा मंगल को डराकर तेजी से बिल में घुस गया। भयभीत मंगल बेहोश हो गया। होश में आने पर उसने देखा कि मेरी आँखों की ज्योति चली गयी है। यात्रा से लौटने पर हीरामन ब्राह्मण ने सर्प देवता के पास जाकर जोर-जोर से उन्हें पुकारा, परन्तु आज कोई उत्तर नहीं था। बहुत अधिक प्रयास करने पर निराश ब्राह्मण घर वापस आ गया। लालच के कारण उसके पुत्र ने सारा धन गंवा दिया।
लालच बुरी बला है।
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