परम श्रद्धेय गुरूदेव १००८ श्रीमत् परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ विद्वद वरिष्ठ दण्डी स्वामी महादेव आश्रमजी महाराज (वीतराग ब्रह्मचारी श्री महेश चैतन्य जी महाराज ) द्वारा रचित पुस्तिका "नैतिक शिक्षा" में से साभार
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अतः परिवार के आकार प्रकार एवं प्रभाव का समाज में सीधा दर्शन होता है। यदि परिवार के लोग दूसरे परिवारों के प्रति सद्भावना,कर्तव्यपरायणता, सौहाद्र तथा सम्मान का व्यवहार रखें तो आज हत्या, लूटपाट, अराजकता तथा भ्रष्टाचार का जो नग्न ताण्डव हो रहा है वह समाप्त हो जायेगा। अतः प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह समाज में संघ बनाकर व्यक्तियों को मानवता के सभी मूल्यों से अवगत कराये। प्रत्येक मौहल्ले में सभी वर्गों के लिये सार्वजनिक भवनों का निर्माण कर उनमें समाज के प्रति दायित्व से लोगों को अवगत कराना चाहिये। निःशुल्क शिक्षा, प्रौढ शिक्षा एवं लघु उद्योग धंधों आदि का प्रशिक्षण देकर समाज को साक्षर, शिक्षित एवं स्वावलम्बी बनाना चाहिये। सदैव परोपकार करते हुए सुदृढ़, अस्पृश्यता से रहित, बहादुर, विशाल हृदय वाले समाज का गठन प्रत्येक नैतिक व्यक्ति को करना चाहिये। समाज के प्रतिष्ठित लोगों को दहेज़ रहित विवाह, दलितोद्धार एवं समाज के लिये आवश्यक कार्यों को धनादि खर्च करके भी अवश्य करना चाहिये।
"जो जल बाढ़े नाव में घर में बाढ़े दाम। दोऊ हाथ उलीचिये यही सज्जन का काम।। "
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