परम श्रद्धेय गुरूदेव द्वारा संचालित धार्मिक मासिक पत्रिका "सिद्ध सुमन प्रभा " में से साभार
मेरी छोटी बहन कविता लखनऊ में एक टेलीफोन कार्यालय में ऑफिसर है, दो वर्ष पूर्व उसके पति की मृत्युं हो गयी थी, उस समय उसका एक मात्र पुत्र संगीत मात्र ८ माह का था, दुर्भाग्य से उसके सास-ससुर ने भी उसे अशुभ मानकर उससे किनारा कर लिया था। मैंने जैसे-तैसे करके परिजनों के सहयोग से उसे एक मकान खरीदवा कर अलग रख दिया, पिछले दिनों से वह अपनी सर्विस कर रही थी। परसों रात्रि में अकस्मात् ही उसके एक पड़ोसी का फोन हमारे घर आया उसने बताया कि संगीत काफी बीमार है, चिकित्सकों ने ८ घंटे का समय दिया है, उसे अस्पताल में भर्ती किया गया है, शायद आज रात्रि मुश्किल से पार कर पाये। मेरी शारीरिक हालत ऐसी नहीं थी कि मैं चल भी पाऊँ अतः मैंने अपनी पत्नि को तुरंत सीतापुर से बस द्वारा लखनऊ पहुंचकर कविता को ढांढस बंधाने को कहा तथा स्वयं असहाय सा शैय्या पर पड़े-पड़े विचार करने लगा, प्रभु से प्रार्थना की कि हे प्रभु कविता ने ऐसे क्या पाप किये हैं जो इसे तीव्रतम आघात बारम्बार सहने पड़ते है। प्रभु इसकी रक्षा करो, मुझे अपने एक मित्र का उदाहरण याद आया कि श्री बालाजी महाराज शीघ्र ही कृपा करके मनोरथ पूर्ति करते हैं, मैंने सारी रात लेटे-लेटे श्री बालाजी महाराज के चरणों में प्रार्थना की तथा प्रातः काल जब मेरा मोबाइल मेरे पास बजा तो भय के मारे मेरी उसे उठाने की इच्छा नहीं हो रही थी। मुझे भय लग रहा था कि भगिनी कविता का करुण क्रन्दन मैं कैसे सुन पाउंगा, फिर भी साहस करके फोन ऑन करके सुना कविता की ख़ुश आवाज़ सुनकर जान में जान आई मैंने पूछा गुड़िया, "संगीत कैसा है ?" वह ख़ुशी के मारे सिसक पड़ी, बोली भैया, "संगीत एकदम ठीक है, आराम से सो रहा है, डाक्टरों का भी कहना था कि न जाने कैसे इस बालक की हालत में अकस्मात् सुधार आ गया तथा उन्होंने कल ११:३० बजे रात्रि में हमें छुट्टी भी दे दी थी, मैंने कहा, मेरी बहन! श्री बालाजी महाराज, मेहन्दीपुर वालों की कृपा से यह सब हुआ है।
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