परम श्रद्धेय गुरूदेव द्वारा रचित पुस्तिका "नैतिक शिक्षा" में से साभार
महर्षि धौम्य के एक शिष्य उपमन्यु भी थे। शिष्य को नियमित करने के लिए एक बार गुरूदेव ने उनके द्वारा लाई भिक्षा को स्वयं ही रख लिया तथा दोबारा भिक्षा लाने के लिए मना कर दिया। इस पर बालक उपमन्यु गायों का दूध पीने लगे, आचार्य ने वह भी रोक दिया, बालक उपमन्यु ने दूध पीने के पश्चात् गाय के बछड़ों के मुँह पर लगे फेन को चाटना शुरू कर दिया उसे भी श्री गुरूदेव ने रोक दिया, एक दिन गौ चराते समय भूख से अत्यंत व्याकुल होकर ब्रह्मचारी उपमन्यु ने आक के पत्ते खा लिये, जिससे दोनों आँखों से अंधे हो गये तथा भटक कर जल से रहित एक कुएँ में गिर पड़े। वे आर्तस्वर में अपने श्री गुरूदेव को पुकारने लगे। महात्मा धौम्य ने कुएँ के समीप आकर कहा पुत्र क्षुधा पर नियंत्रण नहीं हो पाने के कारण तुम्हारी यह स्थिति हुई है फिर भी मैं तुम्हारी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूँ। कुएँ में रहकर ही अश्वनी कुमारों को प्रसन्न करने के लिये मंत्र जाप करो। उनके आदेश पर बालक उपमन्यु ने अश्वनी कुमारों की स्तुति की। बालक उपमन्यु की प्रार्थना से प्रसन्न होकर देव वैद्यों ने उसे औषध के रूप में मालपुआ खाने को दिया, परन्तु गुरू को निवेदन किये बिना खाने के आग्रह को बालक उपमन्यु ने टाल दिया। उपमन्यु की यह बात देखकर गुरूदेव और देव वैद्य सभी द्रवित हो उठे। अत्यंत भावुक होकर महात्मा धौम्य ने अपने आशीर्वाद के साथ उपमन्यु को पुआ खाने का निर्देश दिया। जिसके खाते ही बालक उपमन्यु को औषधीय प्रभाव से नेत्र ज्योति प्राप्त हो गयी तथा श्री गुरूदेव ने भी उन्हें प्रसन्न होकर सर्वश्रेष्ठ विद्वान्बनने का आशीर्वाद दिया।
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