"अभिनन्दन -पत्र "
परम पिता परमात्मा की सृष्टि में समय -समय पर अनेक महापुरुषों का अवतरण होता रहा है। सृष्टि के इसी अनुक्रम में एक बार की बात है कि --
एक ब्राह्मण दम्पत्ति पुत्र प्राप्ति की इच्छा से स्वामी बालचन्द्रानन्द सरस्वतीजी महाराज के पास गये। संत ने तथास्तु कहकर उन्हें विदा किया। संत की कृपा एवं आशीर्वाद के परिणाम स्वरूप ब्राह्मण दम्पत्ति के घर पुत्र का जन्म हुआ। जन्मित बालक बचपन से ही भगवत् चरणानुरागी ,सत्यनिष्ठ , धर्मप्रेमी एवं कुशाग्रबुद्धि संपन्न था। यही बालक जनपद में सदैव शैक्षिक स्तर पर विशेष योग्यताएॅ प्राप्त करता हुआ प्रान्तीय स्तर पर भी स्थान प्राप्त करता रहा।अपनी प्रतिभा एवं योग्यता के बल पर बालक कम उम्र में ही अतिशीघ्र विद्युत इंजीनियरिंग की उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सफल हुआ।
पश्चिमी उत्तरप्रदेश के प्रसिद्ध संत श्री स्वामी विवेकानन्द के आदेश पर ये इंजीनियर बालक हरिद्वार स्थित सप्त सरोवर में एक आश्रम का निर्माण कराने आया। वहीं से बालक के मन में संत जीवन के प्रति विशेष आस्था एवं निष्ठा जागृत हुई। फलतः अस्सी के दशक में ही बालक ने नैष्ठिक ब्रह्मचर्य की दीक्षा ग्रहण कर ली और प्रसिद्ध संत श्रीहरिहरतीर्थ जी महाराज से विश्व प्रसिद्ध कैलाश आश्रम ऋषिकेश में संस्कृत शिक्षा का ज्ञान प्राप्त करना प्रारम्भ किया।
श्री स्वामी मुक्तानन्दगिरी जी से व्याकरण के प्रारम्भिक ग्रन्थ पढ़ कर विविध विद्वानों से व्याकरण का ज्ञान प्राप्त किया तथा काव्य प्रकाश आदि साहित्य ग्रन्थों का अध्ययन किया।
सांख्य योग दर्शन, ब्रह्म-सूत्र, शारिरिक भाष्यादि सहित श्रीमद्-भगवद् गीता आदि ग्रन्थों का अध्ययन, उपनिषद, वेदान्त के उच्च ग्रन्थ पढ़कर अद्वैत सिद्धि जैसे -दुर्लभ तथा दुरूह ग्रन्थों के विशिष्ट अध्ययन के साथ -साथ लगभग २५ वर्षों तक भारत के प्रसिद्ध सन्तों एवं आचार्यों से योग आदि में दीक्षित हुए।
अन्त में सन् २००४ में प्रसिद्ध विरक्त सन्त श्री स्वामी लक्ष्येश्वराश्रम जी महाराज से सन्यास की उच्चतम् श्रेणी दण्ड सन्यास दीक्षा ग्रहण करके श्रीमद् दण्डी स्वामी महादेव आश्रम के नाम से समाज में प्रतिष्ठित हुए।
इस प्रकार परम श्रद्धेय भक्त वत्सल प्रातः स्मरणीय स्वामी बालचन्द्रानन्द सरस्वतीजी के आशीर्वाद से ब्राह्मण दम्पत्ति को पुत्र रूप में प्राप्त हुआ बालक आज हमारे मध्य १००८ श्री परम पूज्य दण्डी स्वामी महादेव आश्रमजी महाराज शुकतीर्थ मुख्य अतिथि के रूप में भगवान परशुराम प्रकाशोत्सव दिवस पर विद्योत्तमा कन्या महाविद्यालय के प्रांगण में श्रीयुत श्रीचन्द शास्त्री अध्यक्ष संस्कृत वर्द्धिनी सभा एवं विद्योत्तमा कन्या महाविद्यालय गंगधाड़ी खतौली की श्रमजन्य पसीने की बूंदों से सिक्तरज से व्याप्त कण-कण को पवित्र करने हेतु उपस्थित हैं, जो हम सभी का गौरव, आस्था,निष्ठा तथा विश्वास है।
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