Thursday, January 21, 2016

"नैतिक कर्तव्य "

परम श्रद्धेय गुरूदेव द्वारा रचित पुस्तिका "नैतिक शिक्षा" में से साभार












"जिसको न निज गौरव न निज देश का अभिमान है। 
वह मनुष्य नहीं पशु निरा, और मृतक समान है।।"
अर्थात् जिस मनुष्य को अपने राष्ट्र, राष्ट्र के गौरव, उत्थान एवं विकास का ध्यान न हो वह व्यक्ति पशु के समान तो है ही साथ ही मरा हुआ भी है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपने निकट की राष्ट्रीय सम्पत्ति, मुख्य मार्गों, औषधालयों आदि की स्वच्छ्ता, सुरक्षा एवं वृद्धि के लिये अथक प्रयत्न करने चाहिये। वह व्यक्ति ही सर्व प्रकार से सुखी हो सकता है जो स्वयं तो राष्ट्र के लिये कार्य करता ही हो तथा समाज के दूसरे लोगों को भी राष्ट्रहित के कार्यों में लगाता हो। इसके साथ ही मनुष्य मात्र का यह भी कर्तव्य है कि वह राष्ट्र के सर्वतोन्मुखी विकास के लिये सार्वजनिक स्थानों पर पूर्णतया मद्यनिषेध, धूम्रपान निषेध तथा अन्य कुरीतियों को भी राष्ट्रहित में रोकें तथा उसके लिये जीवन के अल्प समय की तो बात ही क्या प्राणों तक के उत्सर्ग को भी तत्पर रहना चाहिये। 

"जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं। 
वह हृदय नहीं एक पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।"  

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