परम श्रद्धेय गुरूदेव द्वारा रचित पुस्तिका "नैतिक शिक्षा" में से साभार
महर्षि आयोदधौम्य जंगल में रहकर अनेक विद्यार्थियों को पढ़ाया करते थे। उस समय छात्रों का वास दिन रात आचार्यों के ही समीप हुआ करता था तथा वे विद्या अध्ययन के साथ -साथ कठिन परिश्रम भी करते थे। एक बार महर्षि ने अपने प्रिय शिष्य आरूणि को धान के खेत की मेढ़ ठीक करने के लिये भेजा। नन्हा बालक बार -बार मिट्टी डालने पर भी मेढ़ से बहते पानी को नहीं रोक सका। फिर वह खुद ही मेढ़ में लेट गया तथा रात्रि होने पर भी जब महर्षि धौम्य ने आरूणि को आश्रम में नहीं देखा तो वे चिन्तित होकर स्वयं खेत की ओर दौड़ पड़े। भावुक होकर अपने पुत्र के समान प्रिय शिष्य को गले से लगा लिया। बालक फिर भी यही कहता रहा गुरूजी मैं वहीं लेट जाता हूँ अन्यथा खेत का सारा पानी बाहर बह जायेगा। गुरूदेव अत्यंत द्रवित होकर बोले - बेटा तूने मेरी आज्ञा का पालन करने के लिये अपने प्राणों तक की परवाह किये बिना कार्य किया है। मैं तुझ पर अति प्रसन्न हूँ। अतः योग विधि से समस्त विद्यायें आज ही प्राप्त हो जायेंगी। प्रसिद्ध गुरू भक्त आरूणि नाम का यह बालक उसी समय से महर्षि उद्दालक के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
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